भगवान शिव को धतूरा क्यों चढ़ाते हैं. bhagwan shiv ko dhatura kyu chadaya jata hai |
भगवान शिव को धतूरा क्यों चढ़ाते हैं..??
शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त भांग धतूरा भी चढ़ाते हुए दिख जाएंगे..विचार कीजिये , भगवान शिव को ऐसी नशीली और विषाक्त चीजें क्यों अच्छी लगती है ? इसके पीछे पुराणों मे जहां धार्मिक कारण बताया गया है वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो भगवान शिव को कैलाश पर्वत पर रहने वाला बताया गया है। यह अत्यंत ठंडा प्रदेश है जहां ऐसे आहार और औषधि की जरुरत होती है जो शरीर को ऊष्मा प्रदान करे। वैज्ञानिक दृष्टि से भांग और धतूरा सीमित मात्रा में लिया जाए तो औषधि का काम करता है और शरीर को अंदर से गर्म रखता है।
जबकि धार्मिक दृष्टि से इसका कारण देवी भागव पुराण में बतया गया है। इस पुराण के अनुसार शिव जी ने जब सागर मंथन से निकले हालाहल विष को पी लिया तब वह व्याकुल होने लगे।तब अश्विनी कुमारों ने भांग, धतूरा, बेल आदि औषधियों से शिव जी की व्याकुलता दूर की। उस समय से ही शिव जी को भांग धतूरा प्रिय है। जो भी भक्त शिव जी को भांग धतूरा अर्पित करता है, शिव जी उस पर प्रसन्न होते हैं।
धतूरा एक प्रकार का वृक्ष है जो लगभग 3 - 4 फीट ऊँचा होता है। आचार्य चरक ने इसे कनक और सुश्रुत ने उन्मत्त नाम से संबोधित किया है। आयुर्वेद के ग्रथों में इसे विष वर्ग में रखा गया है। अल्प मात्रा में इसके विभिन्न भागों के उपयोग से अनेक रोग ठीक हो जाते हैं। संस्कृत मे इसे धतूर, मदन, उन्मत्त, मातुल, हिन्दी मे धतूरा, बंगला मे धुतुरा, मराठी मे धोत्रा, धोधरा, गुजराती मे धंतर्रा, और अंग्रेजी मे धोर्न एप्पल स्ट्रामोनियम कहते हैं।धतूरा के पौधे प्रायःसभी जगह पाए जाते हैं,आकार मे इसके फूल लाउडस्पीकर की तरह होते हैं। इसके पत्ते कोमल व मुलायम होते हैं।
इसके फल सेब की तरह गोल होते हैं और फल के ऊपर छोटे-छोटे कांटे होते हैं। धतूरे चार प्रकार के होते हैं -काला, सफेद, नीला व पीला। मैंने केवल सफ़ेद और काले धतूरे को ही देखा है ,काले धतूरे का रंग गहरे काले रंग का होता है और इसके पत्ते, डंडी काले ही होते हैं , जबकि फूल गाढ़ा बेंगनी रंग लिए होते हैं।
आयुर्वेद मे धतूरे के कई औषधीय गुण जाने गए हैं और सटीक उपचार भी हैं,किन्तु इसकी अधिक मात्रा हानि भी पहुंचा देती है। धतूरा के बारे मे एक मुहावरा याद आ गया -कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय इक खाये बौराए है इक पाए बौराय , कनक ... स्वर्ण को भी कहते हैं और धतूरा को भी,अत्यधिक स्वर्ण पाने से और अत्यधिक धतूरा को खाने से व्यक्ति विक्षिप्त सा हो जाता है। तंत्र साधना मे धतूरे का विशिष्ट स्थान है ,इसका उपयोग विशेष रूप से षट्कर्मों ' के लिए होता है। भगवान शिव को धतूरा भी मुख्य रूप से चढ़ाया जाता है। धतूरे को राहु का कारक माना गया है ,इसलिए भगवान शिव को धतूरा चढ़ाने से राहु से संबंधित दोष जैसे कालसर्प व पितृदोष का शमन होता है। यदि शनिवार को भगवान शिव को धतूरा चढ़ाया जाए तो इससे और भी शुभ फल प्राप्त होते हैं।काले धतूरे के पुष्प और फल शनि की पीड़ा को कम करते हैं। धतूरे का फल अर्पित करने का मंत्र - ॐ साम्ब शिवाय नमः धतूरा फल समर्पयामि
धतूरे का फूल अर्पित करने का मंत्र - ॐ साम्ब शिवाय नमः पुष्पम् समर्पयामि " पितृदोष के निवारण हेतु काले रंग के धतूरे को श्यामा तुलसी के साथ बो कर सींचना चाहिए। इस उपाय से पितृदोष कम होने के साथ आर्थिक लाभ की स्थिति भी निर्मित होती है।शिव की महिमा अपरम्पार है शिव ने विषपान कर ही जगत को परोपकार, उदारता और सहनशीलता का संदेश दिया। शिव पूजा मे धतूरे जैसा विषाक्त फल चढ़ाने के पीछे भी भाव यही है कि व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में कटु व्यवहार और कटु वाणी से बचें। स्वार्थ की भावना न रखकर दूसरों के हित का भाव रखें , तभी अपने साथ दूसरों का जीवन सुखी हो सकता है। शिव को धतूरा प्रिय होने की बात मे भी यही संदेश निहित है कि शिवालय मे जाकर शिवलिंग पर केवल धतूरा ही न चढ़ाएँ बल्कि अपने मन और विचारों की कड़वाहट भी अर्पित करें..ऐसा करना ही शिव की प्रसन्नता के लिए सच्ची पूजा होगी, क्योंकि शिव शब्द के साथ सुख, कल्याण व अपनत्व भाव ही जुड़े हैं..
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