बाबा बर्फानी अमरनाथ मंदिर के रहस्य | baba barfani amarnath ke rahshya |

बाबा बर्फानी अमरनाथ मंदिर के रहस्य.... 




हिमालय की गोदी में स्थित भगवान शिव को समर्पित अमरनाथ का मंदिर हिंदुओं के सबसे प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है, जिससे लाखों-करोड़ों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है। यह पवित्र तीर्थराज श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर स्थित है।

जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई करीब 13 हजार, 600 फुट है। इस पवित्र गुफा की लंबाई 19 मीटर, चौड़ाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है।


भगवान शिव के इस प्रमुख अमरनाथ गुफा में भगवान शंकर और माता पार्वती के अमरत्व का रहस्य बताया गया था, इसलिए इस पवित्र स्थल को तीर्थों का तीर्थ भी कहा जाता है।

इस पवित्र गुफा के दर्शन करने से भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं, हालांकि इसके दर्शन बेहद दुर्लभ हैं, बड़ी मुश्किलों के बाद भक्तगण इसके दर्शन करने के लिए यहां पहुंचते हैं।

 इस पवित्र मंदिर का अपना एक ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है। हिन्दुओं के इस पवित्र गुफा की यह विशेषता है कि यहां हर साल बर्फ से बेहद सुंदर शिवलिंग बनता है, इसलिए इसे बर्फानी वाले बाबा, स्वयंभू ‘हिमानी शिवलिंग’ आदि के नाम से भी जाना जाता है।इस पवित्र हिमलिंग के दर्शन करने दूर-दूर से भक्त जन यहां पहुंचते हैं।

 अमरनाथ की यात्रा पूरे साल में करीब 45 दिन की होती है,जो ज्यादातर जुलाई और अगस्त के बीच में होती है। आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर भाई-बहन के पावन पर्व रक्षाबंधन तक होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए दुनिया के कोने-कोने से शिव भक्त अमरनाथ यात्रा पर जाते हैं।


इस गुफा के चारो तरफ बर्फीली पहाड़ियाँ है। बल्कि यह गुफा भी ज्यादातर समय पूरी तरह से बर्फ से ढंकी हुई होती है और साल में एक बार इस गुफा को श्रद्धालुओ के लिये खोला भी जाता है।


हजारो लोग रोज़ अमरनाथ बाबा के दर्शन के लिये आते है और गुफा के अंदर बनी बाबा बर्फानी को मूर्ति को देखने हर साल लोग भारी मात्रा में आते है।


इतिहास में इस बात का भी जिक्र किया जाता है कि, महान शासक आर्यराजा कश्मीर में बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा करते थे। राजतरंगिणी ( कल्हण) की किताब में भी इसे अमरनाथ या अमरेश्वर का नाम दिया गया है।

कहा जाता है की 11 वी शताब्दी में रानी सुर्यमठी ने त्रिशूल, वाणलिंग और दुसरे पवित्र चिन्हों को मंदिर में भेट स्वरुप दिये थे।

 अमरनाथ गुफा की यात्रा की शुरुआत प्रजाभट्ट द्वारा की गयी थी। इसके साथ-साथ इतिहास में इस गुफा को लेकर कई दूसरी कथाए भी मौजूद है।

पवित्र गुफा की खोज 


कहा जाता है की मध्य कालीन समय के बाद, 15 वी शताब्दी में दोबारा धर्मगुरूओ द्वारा इसे खोजने से पहले लोग इस गुफा को भूलने लगे थे।


इस गुफा से संबंधित एक और कहानी भृगु मुनि की है। बहुत समय पहले, कहा जाता था की कश्मीर की घाटी जलमग्न है और कश्यप मुनि ने कई नदियों का बहाव किया था।


इसीलिए जब पानी सूखने लगा तब सबसे पहले भृगु मुनि ने ही सबसे पहले भगवान अमरनाथ जी के दर्शन किये थे।


इसके बाद जब लोगो ने अमरनाथ लिंग के बारे में सुना तब यह लिंग भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग कहलाने लगा और अब हर साल लाखो श्रद्धालु भगवान अमरनाथ के दर्शन के लिये आते है।


लिंग 40 फीट ऊँची अमरनाथ गुफा में पानी की बूंदों के जम जाने की वजह से पत्थर का एक आरोही निक्षेप बन जाता है।

यह गुफा मई से अगस्त तक मोम की बनी हुई प्रतीत होती है क्योकि उस समय हिमालय का बर्फ पिघलकर इस गुफा पर आकर जमने लगता है और शिवलिंग समान प्रतिकृति हमें देखने को मिलती है।


इन महीने के दौरान ही शिवलिंग का आकार दिन ब दिन कम होते जाता है।

कहा जाता है की सूर्य और चन्द्रमा के उगने और अस्त होने के समय के अनुसार इस लिंग का आकार भी कम-ज्यादा होता है। लेकिन इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नही है।


हिन्दू महात्माओ के अनुसार, यह वही गुफा है जहाँ भगवान शिव ने माता पार्वती को जीवन के महत्त्व के बारे में समझाया था।

दूसरी मान्यताओ के अनुसार बर्फ से बना हुआ लिंग पार्वती और शिवजी के पुत्र गणेशजी का भी प्रतिनिधित्व करता है।


इस गुफा का मुख्य वार्षिक तीर्थस्थान बर्फ से बनने वाली शिवलिंग की जगह ही है।


अमरनाथ गुफा के लिए रास्ता –


भक्तगण बालटाल या पहलगाम से पैदल ही यात्रा करते है। 

इसके बाद की यात्रा करने के लिये तक़रीबन 5 दिन लगते है।


राज्य यातायात परिवहन निगम और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर रोज़ जम्मू से पहलगाम और बालताल तक की यात्रा सेवा प्रदान करते है।

 इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर से प्राइवेट टैक्सी भी हम कर सकते है।

उत्तरी रास्ता 16 किलोमीटर लंबा है लेकिन इस रास्ते पर चढ़ाई करना बहुत ही मुश्किल है। यह रास्ता बालताल से शुरू होता है और डोमिअल, बरारी और संगम से होते हुए गुफा तक पहुचता है। उत्तरी रास्ते में हमें अमरनाथ घाटी और अमरावाथी नदी भी देखने को मिलती है जो अमरनाथ ग्लेशियर से जुडी हुई है।

कहा जाता है की भगवान शिव पहलगाम (बैल गाँव) में नंदी और बैल को छोड़ गए थे। चंदनवाड़ी में उन्होंने अपनी जटाओ से चन्द्र को छोड़ा था। और शेषनाग सरोवर के किनारे उन्होंने अपना साँप छोड़ा था।


महागुनस (महागणेश पहाड़ी) पर्वत पर उन्होंने भगवान गणेश को छोड़ा था।

पंजतरणी पर उन्होंने पाँच तत्व- धरती, पानी, हवा, आग और आकाश छोड़ा था। और इस प्रकार दुनिया की सभी चीजो का त्याग कर भगवान शिव ना वहाँ तांडव नृत्य किया था,और अंत में भगवान देवी पार्वती के साथ पवित्र गुफा अमरनाथ आये थे।


हिन्दुओ के लिये यहाँ भगवान अमरनाथ बाबा का मंदिर प्रसिद्ध और पवित्र यात्रा का स्थान है। 

पुराने समय में गुफा की तरफ जाने का रास्ता रावलपिंडी (पकिस्तान) से होकर गुजरता था लेकिन अब हम सीधे ट्रेन से जम्मू जा सकते है, जम्मू को भारत का विंटर कैपिटल (ठण्ड की राजधानी) भी कहा जाता है।

इस यात्रा का सबसे अच्छा समय गुरु पूर्णिमा और श्रावण पूर्णिमा के समय में होता है। 

जम्मू-कश्मीर सरकार ने श्रद्धालुओ की सुख-सुविधाओ के लिये रास्ते भर में सभी सुविधाए उपलब्ध करवाई है। ताकि भक्तगण आसानी से अपनी अमरनाथ यात्रा पूरी कर सके,लेकिन कई बार यात्रियों की यात्रा में बारिश बाधा बनकर आ जाती है।


जम्मू से लेकर पहलगाम तक की बस सेवा भी उपलब्ध है। पहलगाम में श्रद्धालु अपने सामन और कपड़ो के लिये कई बार कुली भी रखते है। वहाँ हर कोई यात्रा की तैयारिया करने में ही व्यस्त रहता है।

इसी के साथ सूरज की चमचमाती सुनहरी किरणे जब पहलगाम नदी पर गिरती है, तब एक महमोहक दृश्य भी यात्रियों को दिखाई देता है। कश्मीर में पहलगाम मतलब ही धर्मगुरूओ की जमीन...

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